संवाददाता, द आरएल, न्यूज
एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में कहते हैं आने वाला दशक उत्तराखंड का होगा। वहीं, धरातल पर हकीकत यह है कि मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पहाड़ के गांव पलायन की मार झेल रहे हैं। इसका जीता जागता उदाहरण जहरीखाल ब्लॉक के अंतर्गत मलाणा गांव है। मुख्यमार्ग घेरवा से करीब चार किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर स्थित यह गांव सड़क के अभाव में खाली होता जा रहा है। समय से अस्पताल नहीं पहुंचने के कारण कई ग्रामीण असमय काल का ग्रास भी बन चुके हैं। हालत यह है कि गांव के लिए चलाई गई सड़क की फाइल तीन वर्षों से लोकनिर्माण विभाग व वन विभाग के बीच फुटबॉल बनी हुई है।
20 मई 2021 को तीन किलोमीटर लंबे घेरुवा से गुजरखंड मलाणा मोटर मार्ग को प्रशासनिक व वित्तीय स्वीकृति प्रदान करते हुए प्रथम चरण के कार्यों के लिए 21.43 लाख की धनराशि स्वीकृत की गई थी। शासन से स्वीकृति मिलने के बाद प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री सतपाल महाराज ने सड़क का शिलान्यास कर दिया। सड़क शिलान्यास तीन वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है। लेकिन, अब तक धरातल पर कार्य नहीं हो पाया है। सड़क स्वीकृति की फाइल केवल लोकनिर्माण विभाग व वन विभाग के बीच फुटबॉल बनकर रह गई है। लोकनिर्माण विभाग फाइल आगे बढ़ाता है तो वन विभाग उसपर आपत्ति लगा देता है। पिछले तीन वर्षों में आपत्ति लगने का खेल तीन बार हो चुका है। अब सवाल यह है कि कुर्सी पर बैठे अधिकारी क्या बिना धरातल की स्थिति देखे ही अपनी रिर्पोट दे रहे हैं। जो फाइल को स्वीकृत होने में इतना समय लग रहा है। या फिर वोट देने वाली जनता को ठगा जा रहा है।
शिलान्यास के बाद शुरू हुई वन भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया
बेहतर विकास के दावे करने वाला सरकारी सिस्टम जनता को किस तरह ठगता है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शिलान्यास से पूर्व किसी ने भी सड़क की स्थित पर नजर नहीं डाली। शिलान्यास के बाद महकमा मौके पर पहुंचा तो पता चला कि जिस क्षेत्र में सड़क निर्माण होना है वहां 0.513 हेक्टेयर भूमि वन क्षेत्र मे हैं। 31जुलाई 2023 से वन भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू हुई, जो तीन वर्ष बाद भी पूरी नहीं हो पाई।
0 Comments